आज 17 जनवरी, जुमे का मुबारक दिन, तारीख 16 रज्जब है। यह दिन हज़रत मोहिद्दिसे आज़म-ए-हिंद रहमतुल्लाह अलैह की विसाल की याद में हर साल अकीदत और मोहब्बत के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर दुनियाभर में उनके मुरीदीन और मुहिब्बीन इकट्ठा होकर उनकी रूह को सवाब पहुंचाने के लिए दुआओं और फातिहा ख्वानी का एहतमाम करते हैं।
इस मुबारक मौके पर उनके जानशींन मोहिद्दीसे आजम हिन्द वा अमीरे मिल्लत वा सूफिये हिन्द हज़रत मौलाना सैयद हसन असकरी इब्न अरबी अशरफ जिलानी, जो मोहसिन-ए-आज़म मिशन के सरपरस्त (बानी )भी हैं, ने अपने पैगाम में कहा:
उन्होंने आगे फरमाया, "हम दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला ज़ालिमों, काज़िबों और फरेबकारों के शर से उम्मत को महफूज़ रखे। हमें दीन-ओ-सुन्नियत और कौम-ओ-मिल्लत की खिदमत करने की तौफीक अता फरमाए।"
इस मौके पर मदरसों और मसाजिद के हिफाज़त के लिए भी दुआ की गई। मोहसिन-ए-आज़म मिशन की तमाम शाखाओं की खिदमात को कुबूल करने और उनके जरिए इस्लाम के फैलाव की दुआएं की गईं।
हज़रत मुहद्दिस-ए-आज़म के जांनशीन, हज़रत शैख़ुल इस्लाम दामत बरकातुहुम का साया उम्मत पर हमेशा दराज़ रहे, इस पर भी अल्लाह से इल्तिजा की गई। साथ ही मरहूमीन की मगफिरत और उम्मत-ए-मुस्लिमाह में इत्तेहाद और मोहब्बत की दुआ की गई।
उर्स-ए-मुबारक के मौके पर मसाजिद और मजलिसों में कुरआन की तिलावत, नाते-रसूल और वाज-ओ-नसीहत का एहतमाम किया गया। हजारों की तादाद में आशिकाने-रसूल ने शिरकत कर के इस दिन को यादगार बनाया।
इस मुबारक मौके पर उनके जानशींन मोहिद्दीसे आजम हिन्द वा अमीरे मिल्लत वा सूफिये हिन्द हज़रत मौलाना सैयद हसन असकरी इब्न अरबी अशरफ जिलानी, जो मोहसिन-ए-आज़म मिशन के सरपरस्त (बानी )भी हैं, ने अपने पैगाम में कहा:
"अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की बारगाह में दुआ है कि उर्स-ए-मुबारक के इस मौके पर तमाम मुरीदीन और मुहिब्बीन की दुआओं को कबूल फरमाए। कमज़ोरों को ताकत, बेसहारा लोगों को सहारा, परेशानहालों को सुकून और बेरोजगारों को रोजगार अता फरमाए। बीमारों को शिफा, मजलूमों को हिम्मत और इज्ज़त अता फरमाए।"
उन्होंने आगे फरमाया, "हम दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला ज़ालिमों, काज़िबों और फरेबकारों के शर से उम्मत को महफूज़ रखे। हमें दीन-ओ-सुन्नियत और कौम-ओ-मिल्लत की खिदमत करने की तौफीक अता फरमाए।"
इस मौके पर मदरसों और मसाजिद के हिफाज़त के लिए भी दुआ की गई। मोहसिन-ए-आज़म मिशन की तमाम शाखाओं की खिदमात को कुबूल करने और उनके जरिए इस्लाम के फैलाव की दुआएं की गईं।
हज़रत मुहद्दिस-ए-आज़म के जांनशीन, हज़रत शैख़ुल इस्लाम दामत बरकातुहुम का साया उम्मत पर हमेशा दराज़ रहे, इस पर भी अल्लाह से इल्तिजा की गई। साथ ही मरहूमीन की मगफिरत और उम्मत-ए-मुस्लिमाह में इत्तेहाद और मोहब्बत की दुआ की गई।
उर्स-ए-मुबारक के मौके पर मसाजिद और मजलिसों में कुरआन की तिलावत, नाते-रसूल और वाज-ओ-नसीहत का एहतमाम किया गया। हजारों की तादाद में आशिकाने-रसूल ने शिरकत कर के इस दिन को यादगार बनाया।
अल्लाह से दुआ है कि वह हज़रत की तालीमात को कयामत तक क़ायम रखे और उनकी बरकतों को हमारी जिंदगी में शामिल करे। आमीन।
एडिटर इन चीफ मुहम्मद असफाक आरिफ